दीपक चौरसिया
देवरी कला । देवरी से 16 किलोमीटर पनारी गांव में बिराजित मां चौसठ योगिनी के मंदिर मे आस्था का सैलाब उमड़ रहा है।
यहां नवरात्र के पहले दिन से ही भक्त आना शुरू हो जाते हैं। श्रद्धालु नवरात्र में चौसठ योगिनी माता को अद्वितीय तीर्थ मानते हैं। बरगद के वृक्ष से यहां हजारों की संख्या में लटके घंटे मां के प्रति आस्था को व्यक्त करते हैं। मां चौसठ योगिनी के दरबार तक पहुंचने के लिए नैशनल हाइवे 26 पर सागर और नरसिंहपुर मार्ग के बीच पड़ने वाले महाराजपुर से दो किलोमीटर दूरी से रास्ता है।
दो एकड़ में फैला है बरगद का वृक्ष:
पनारी गांव में जिस बरगद के वृक्ष के नीचे मां चौसठ योगिनी का दरबारस्थापित है, वह बरगद का पेड़ दो किमी एरिया में फैला हुआ है। इस बरगद के विशाल वृक्ष की जटाओं व सभी दिशाओं में मां जगत जननी के विभिन्न स्वरूपों में चौसठ योगिनी की प्रतिमाएं विराजमान हैं। इस तीर्थ में हजारों साल पुराने विशाल बरगद की अदभुत उत्पत्ति, संरचना मध्यप्रदेश
में अद्वितीय है। बरगद का यह एक वृक्ष फैलकर दो एकड़ भूमि में अपनी मनोहारी छटा बिखेरता है। एक वृक्ष से निकले तने से पूरे क्षेत्र में चार सौ से अधिक तने और अगिनत डालियां ही दिखाई देती हैं।
मंदिर के पुजारी द्वारकाप्रसाद वैद्य ने बताया कि मां चौसठ योगिनी की महिमा अपरंपार है। यहां सागर जिले के अलावा प्रदेश व देश के कौने कौने से हजारों श्रद्धालु मां से मन्नत मांगने आते हैं, जिनकी हर मनोकामना मां पूरी करती हैं। कोई भी भक्त मां के दरबार से खाली नहीं जाता है। मां चौसठ योगिनी वरगद में से प्रगट हुई और और मां के विभिन्न स्वरूपों की पाषण प्रतिमाएं वरगद बड़ते स्वरूप के कारण जड़ों में जकड़ गई। सन 1960 में जनसहयोग से प्रतिमाओं को जीर्णशीर्ष अवस्था से निकालकर पुनर्स्थापित कराया गया। यह बरगद का वृक्ष पांच हजार साल पुराना बताया जाता है। जिसे चौसठ योगिनी का स्वरूप माना गया। यहां चैत्र की नवरात्र में मेला का आयोजन किया जाता है।
तीर्थस्थल के रूप में विकसित हो सकता है दरबार पनारी स्थित चौसठ योगिनी धाम प्रदेश में अनूठा तीर्थ स्थल है। पनारी निवासी श्रीकांत वैद्य ने बताया कि यहां के लोग लंबे समय से चौसठ योगिनी धाम को तीर्थस्थल घोषित करने व पर्यटन विभाग द्वारा विकसित कराए जाने की मांग कर रहे है। श्री वैद्य के मुताबिक यहां प्रदेश के अलावा देश के कोने-कोने से हजारों लोग दर्शन करने आते है। यह तीर्थस्थल नौरादेही अभयारण्य के पास है। यदि इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए तो इसका लाभ अभयारण्य आने वाले सैलानियों को भी
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