सिलाई का हुनर सीखकर महिलाएं बन रही है आत्मनिर्भर

दीपक चौरसिया
देवरी कला। देवरी ब्लॉक की नव युवतियों एवं महिलाएं अपनी मेहनत लगन और सिलाई में हुनरमंदी की दम पर आत्मनिर्भरता के मुकाम पर पहुंच रही हैं। जिसका माध्यम बना आजीविका मिशन।
बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण अपना घर गृहस्ती चलाने में परेशानी महसूस कर रही थी ऐसी महिलाओं के लिए आजीविका मिशन संबल बन गया। बड़ी संख्या में ऐसी हुनरमंद महिलाएं सामने आई हैं जिन्होंने सिलाई के हुनर के सीखकर अपने परिवार की आजीविका चला रही हैं। जो महिला सशक्तिकरण का उदाहरण भी हैं।
देवरी ब्लॉक में 70 ग्राम पंचायतों में 1450 स्व सहायता समूह संचालित हैं जिसमें 650 महिलाएं सिलाई करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं।

स्कूटी से आती हैं जूली ठाकुर:

आत्मनिर्भर बनी महिलाओं में ग्राम गोपालपुरा की जूली ठाकुर महिला जिन्होंने अपनी मेहनत की दम पर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधार ली है सिलाई करके उन्होंने स्कूटी खरीदी है और अब स्कूटी चला कर स्वयं 18 किलोमीटर का रोज सफर तय करके अजीब कमीशन के देवरी सिलाई सेंटर पर पहुंचती है। जूली ठाकुर का कहना है कि वह 3 साल से लगातार सिलाई का काम कर रहे हैं और प्रतिदिन 20 से 25पीस स्कूल ड्रेस बना लेते हैं उन्होंने बताया कि उनकी पहले आर्थिक स्थिति कमजोर थी जब उन्हें पता चला कि गांव में समूह बनाए जा रहे हैं और समूह के फायदे बताए जा रहे थे तब उन्होंने समूह से जोड़कर 1 माह का सिलाई प्रशिक्षण प्राप्त किया और लगातार सिलाई करके अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारी है । कोरोना काल में उन्होंने मास्क का निर्माण किया और वर्तमान में स्कूली ड्रेस चलकर आर्थिक स्थिति मजबूत की है उन्होंने अपने खर्चे पर स्कूटी खरीदी और वही चलाकर देवरी सिलाई सेंटर पर काम करने आती है। और स्कूली ड्रेस बनाकर 7 -8000 रुपए महीने कमा लेती हूं।
अब किसी से नहीं मांगना पड़ता पैसा-
ग्राम बिछुआ भवतरा की अनुराधा पटेल ने अपने दम पर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत कर ली है। अनुराधा बताती हैं कि आजीविका मिशन में आस्था स्व सहायता समूह से जुड़कर वह पिछले 3 साल से सिलाई का काम कर रही हैं और प्रतिदिन 7 से लेकर ₹8000 महीने कमा लेती हैं अनुराधा बताया कि पहले वह घर पर सिलाई करके पचास ₹100 कमाती थी लेकिन अब घर पर भी काम करती हैं और देवरी में आजीविका मिशन के सिलाई सेंटर बजाकर काम करती हैं और प्रतिदिन 20 से 25 स्कूल ड्रेस बना लेती हैं इसके पहले उन्होंने 50000 का काम किया था। अनुराधा ने बताया कि आजीविका मिशन से जुड़कर दूसरों पर निर्भर नहीं रहती हैं वह अपना और बच्चों का खर्च चला लेती हैं ,किसी से पैसे मांगने की जरूरत नहीं पड़ती है।

जितना काम उतना दाम-
काशखेड़ा गांव की रहने वाली रजनी ताम्रकार ने बताया कि वह पिछले 3 साल से आजीविका मिशन के सिलाई सेंटर पर काम कर रही हैं और वह अपने काम से मिलने वाली राशि से खुश है। वह बताती हैं कि जितना काम उतना दाम जितनी ,हम मेहनत कर लेंगे हमें उतना मिलता है। इस तरह वाले महीने में 6-7 हजार रुपए कमा लेती हैं और उनके परिवार का खर्चा इसीसे चलता रहता है।
इनका कहना है:

देवरी ब्लॉक में 1450 स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं सिलाई कर गई आत्मनिर्भर बनने लगी हैं। देवरी गौरझामर सिलाई सेंटर पर 60-60 महिलाएं काम कर रही हैं एवं घरों पर 650 महिलाएं सिलाई का काम करती हैं। वर्तमान में सिलाई सेंटर पर देवरी विकासखंड के छात्र-छात्राओं 10500 स्कूली ड्रेस बनाने का काम किया जा रहा है जो 31 मार्च तक चलेगा।
-नीरज डहरवाल, ब्लॉक कोऑर्डिनेटर, राज्य आजीविका मिशन देवरी।

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